सामुदायिक और युवा नेतृत्व भूमि अधिकार के संघर्ष लिए महत्वपूर्ण
भोपाल, 15 अप्रैल 2019। “भूमि अधिकार के संघर्ष मजबूती और विस्तार देने के लिए स्थानीय और सामुदायिक नेतृत्व खासकर युवा नेतृत्व को सामने लाने की जरूरत है।” भूमि अधिकार पर राष्ट्रीय विमर्श के समापन पर आज सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार सिन्हा ने ये बातें भोपाल में कही।
सामाजिक संस्था जन पहल और एक्शनएड एसोसिएशन के साझा प्रयास से आयोजित भूमि अधिकार पर राष्ट्रीय विमर्श में 15 राज्यों से 80 से ज्यादा की संख्या में वभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और जमीन के मुद्दे पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता जुटे। इस दो दिवसीय विमर्श में दलित, आदिवासी और महिलाओं के भूमि अधिकारों, विस्थापन की त्रासदी और भूमि सुधार से सबंधित मुद्दों पर चर्चा के माध्यम से भूमिहीन समुदायों और समूहों के भूमि अधिकार के संघर्ष को मजबूत करने के लिए रणनीति तैयार की गई।
भोपाल में महिलाओं के अधिकारों पर लंबे समय से काम कर रहीं सारिका सिन्हा ने कहा, “महिलाओं के लिए भूमि का स्वामित्व न सिर्फ उनके आर्थिक सशक्तिकरण के नजरिए से महत्वपूर्ण है, बल्कि महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा का संभावित समाधान भी है, परिवार के भरण-पोषण का साधन और व्यक्तिगत तौर पर महिला की स्थिति को सुरक्षित और मजबूत करने का जरिया भी है।”
छत्तीसगढ़ की आदिवासी कार्यकर्ता इंदु नेताम ने कहा, “आदिवासी समुदायों में महिला-पुरुष समानता के मुद्दे पर गैर आदिवासी समुदायों की तुलना में प्रगतिशीलता देखी जाती है। लेकिन, आदिवासी समुदायों में भी महिलाओं के भूमि अधिकार को स्पष्ट और सुनिश्चित करने और महिला नेतृत्व को बढ़ाने की जरूरत है।”
जेएनयू के प्रोफेसर सुधीर कुमार सथर ने कहा, “भूमि के अधिकार को केवल आजीविका के सवाल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। भूमि के स्वामित्व का मुद्दा आज नागरिकता और व्यक्तिगत पहचान के नजरिए से भी बेहद महत्वपूर्ण है।”
चर्चा के दौरान ये बातें सामने आईं कि भूमि के सवाल को तीन पहलुओं में देखा जाना चाहिए। पहला, भूमि सुधार और भूमिहीनों के भूमि अधिकार का मुद्दा, जिसके तहत रणनीति के तहत वास भूमि के अधिकार को हासिल करने के लिए संघर्ष करने की जरूरत है। साथ ही कृषि भूमि के अधिकार के मुद्दे को राजनीतिक एजेंडे में लाना प्रमुख है। दूसरा पहलू कृषि संकट का मुद्दा है, जहां उन कारकों पर गौर करने की जरूरत है, जिससे कृषि हतोत्साहित हो रही है और कृषक भूमिहीन, आजीविका विहीन और बेरोजगार हो रहे हैं। तीसरा पहलू है- जमीन की लूट, जिससे गांवों में आदिवासी और शहरों में शहरी गरीब प्रभावित हो रहे हैं। जन संगठनों, हितधारक समूहों और समुदायों को साथ मिलकर रणनीति के तहत संगठित होकर राष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष करने की जरूरत है।
भूमि अधिकार पर राष्ट्रीय विमर्श में राजकुमार सिन्हा, सुरेश जॉर्ज, रमेश शर्मा, यमुना सन्नी, रोहिणी चतुर्वेदी, प्रवीण झा, सुधीर कुमार सुथर, इंदु नेताम, के के सिंह, अमरजीत, तनवीर काजी, निकोलस बारला, शंकर तड़वाल, योगेश देवान, घनश्याम, अशोक चौधरी, उमेश तिवारी, देवजीत नंदी, लिंडा चकचुआक, देबाशीष समल, कपिलेश्वर, संदीप चाचरा, प्रफुल्ल सामंतरा, बालकृष्ण रेनके, सारिका सिन्हा, राकेश देवान, शिप्रा देओ, अजय यादव, पोबित्रा मंडल, आराधना भार्गव शामिल हुए।
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