पृथ्वी पर घुमंतू पषुचारण, प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। यह रखरखाव और साझाकरण सहित, सहयोग और एकजुटता में निहित सामाजिक व्यवस्था पर आधारित है तथा टिकाऊ तरीके से जीवन जीने की मिसाल पेष करता है। इसमें गतिषीलता, न्यूनतम पर्यावरणीय पदचिह्न और प्रकृति के प्रति गहरे सम्मान का भाव शामिल है। इस व्यवसाय की प्रथाएँ, भूमि पर कम से कम दबाव बनाकर जीने का मूल्यवान सबक प्रदान करती हैं, जो अनुकूलन, संसाधनषीलता और पर्यावरण से समरसता के महत्व पर जोर देती हैं। भारत में घुमंतू पषुचारण की एक समृद्ध परंपरा रही है, जिसमें लाखों-लाख चरवाहे पषुधन आबादी का प्रबंधन करते हैं। घुमंतू चरवाहों के समुदाय, अर्थव्यवस्था और जैव-विविधता संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। आज बहुत से घुमंतू चरवाहे या तो पूरी तरह से एक जगह पर बस चुके हैं, या, अर्ध-घुमंतू जीवन व्यतीत करते हैं। इस परिवर्तित जीवन शैली के पीछे सामाजिक एवं पर्यावरणीय कारण शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत की कुल जनसंख्या का 1ः, या लगभग 1.3 करोड़ लोग चरवाहे हैं। इनके लिए पषुधन प्रबंधन और प्रजनन सदियों से चला आ रहा एक वंषानुगत पेषा है।
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