साथी हाथ बढ़ाना – एक सशक्त किशोरी की प्रेरणादायक कहानी - ActionAid India
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साथी हाथ बढ़ाना – एक सशक्त किशोरी की प्रेरणादायक कहानी

Author: Dr Sharad Kumari
Posted on: Wednesday, 11th June 2025

(Dr Sharad Kumari leads ActionAid Association’s work in Bihar and Jharkhand. The views expressed here are personal and do not necessarily reflect those of ActionAid Association.)

उत्तर बिहार की एक खतरनाक और बाढ़प्रवण नदी – महानंदा – के किनारे बसे गांव की यह कहानी है। यह वह इलाका है जहां हर साल भारी बाढ़ आती है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ जाती हैं। स्थानीय स्तर पर रोजगार के कोई ठोस अवसर नहीं हैं। परिणामस्वरूप, यहां के लोगों को या तो पलायन करना पड़ता है या फिर साइकिल पर खाद्य सामग्री बेचने जैसे छोटे-मोटे कामों पर निर्भर रहना पड़ता है। यहां तक कि लगभग 80-90 प्रतिशत लोग आजीविका के लिए गांव छोड़ चुके हैं।

इसी परिस्थितियों में एक पिता ने अपने बेटे मोहन कुमार (बदला हुआ नाम) को बाल मजदूरी करने भेजने का निर्णय लिया। मोहन उस समय केवल 9वीं कक्षा का छात्र था।

लेकिन इस बीच मोहन की बहन होलिका  (बदला हुआ नाम)अपने पिता को समझाने/मनाने में सफल रही। उसके पिता मोहन को स्कूल भेजने के लिए राजी हो गए। परिणामस्वरूप, आज मोहन ने प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास किया है।, फिर इंटर करके तब अपने परिवार के लिए काम करना शुरू किया है।

होलिका एक्शन एड एसोसिएशन द्वारा संचालित किशोर किशोरियों के समूह बैठक में नियमित आती थी और किशोर किशोरियों के सशक्तिकरण एवं व्यक्तित्व निर्माण के मुद्दों पर रोजाना बातचीत ‌, खेलकूद एवं अन्य क्रिया कलापों में भाग लेती थी. सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर जागरूकता, अशिक्षा, बाल श्रम, बाल विवाह के दुष्प्रभावों पर एक्शन एड एसोसिएशन के कार्यकर्ताओं के निरंतर हस्तक्षेप के कारण होलिका  ने अपने माता-पिता से बात करने का फैसला किया और वह‌ खुद से तथा एक्शन एड एसोसिएशन के साथियों की मदद से अपने भाई मोहन को बाल मजदूरी करने से बचा पाई.

एक्शन एड एसोसिएशन के निरंतर हस्तक्षेप के कारण और मोहन कुमार की सफलता को देखते हुए,उस क्षेत्र के 30 लड़कियां और 19 लड़के जो या तो स्कूल छोड़ चुके थे या कभी स्कूल नहीं जाते थे, उन्होंने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया और आज भी जारी हैं।

 तब से लेकर अब तक होलिका के टोले और समुदाय में बाल विवाह और बाल श्रम के कोई मामले सामने नहीं आए। समुदाय सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और इसकी प्रक्रिया के बारे में लगभग जागरूक है। समुदाय ने बाढ़ के खिलाफ़ निपटने के लिए तंत्र विकसित कर लिया है। खास तौर पर, किशोर लड़कियां और महिलाएं बाढ़ के समय अपने रजोनिवृत्ति का प्रबंधन करने में सक्षम हैं।

अंत में, होलिका ने खुद अपना बाल विवाह भी रोका ,समय पुरा होने पर शादी की तथा एक्शन एड एसोसिएशन के साथ एक वोलेंटियर के रूप में काम करती रही, समय आने पर उसे एक साथी संस्था में पंचायत समन्वयक के रूप में सीपीएसएल (स्थायी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए केंद्र) में नौकरी मिल गई है और वह अपने गांव और आसपास के कई लोगों के लिए रोल मॉडल बन गई है।

Photo 2
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होलिका  बिहार के पूर्णिया जिले के बैसी प्रखंड, पंचायत- गंगर घोष, अमीरगंज गांव की रहने वाली है। उसके परिवार में तीन भाई और दो बहनें हैं। पिता एक छोटे दुकानदार हैं, जो मुश्किल से 5000 रुपये महीना कमा पाते हैं। मां गृहिणी हैं। पिता और मां दोनों ही अनपढ़ हैं। होलिका कला स्नातक की पढ़ाई कर रही है, उसके भाई मोहन कुमार ने इंटर किया है और बाकी भाई-बहन आंगनवाड़ी या पास के सरकारी स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। शिक्षा की यही स्थिति पूरे क्षेत्र और गांव की आबादी में है।

पिछले 7-8 वर्षों से एक्शन एड एसोसिएशन बिहार के 15 जिलों में बाल संरक्षण और किशोर-किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए निरंतर काम कर रहा है। इसकी टीम ने जमीनी स्तर पर गहन प्रक्रियाएं अपनाई हैं – जैसे कि समुदाय में बाल विवाह, बाल श्रम, अशिक्षा, लैंगिक भेदभाव, नशा, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर जागरूकता फैलाना। किशोर-किशोरियों को जीवन कौशल, करियर फेयर, नेतृत्व क्षमता और सकारात्मक मर्दानगी जैसे मुद्दों पर प्रशिक्षित किया गया है।

किशोरों और किशोरियों ने मिलकर न केवल अपनी समस्याएं पहचानीं, बल्कि उन्हें हल करने के रास्ते भी खोजे। किशोरियों ने माहवारी प्रबंधन पर खुलकर बात की, तो किशोरों ने नशा मुक्त जीवन और बाल विवाह/बाल श्रम से मुक्ति का संदेश दिया। उन्होंने अपने अभिभावकों, जनप्रतिनिधियों, शिक्षकों और सरकारी अधिकारियों तक अपनी बात दृढ़ता से पहुंचाई।

यह कहानी सिर्फ एक होलिका की नहीं, बल्कि उस बदलाव की है जो तब आता है जब समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े लोग भी जागरूक और सशक्त हो जाएं। एक्शन एड एसोसिएशन जैसे संगठनों के सहयोग से किशोरियों का यह नेतृत्व सामाजिक क्रांति की नींव बन गया है। यह कहानी प्रेरणा देती है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, जब जागरूकता, शिक्षा और साहस मिल जाएं, तो बदलाव अवश्य आता है।